Menu
blogid : 20401 postid : 826273

एक “अटल” व्यक्तित्व

"लेखशस्त्र"
"लेखशस्त्र"
  • 2 Posts
  • 1 Comment

Atal bihari vajpyee

साहसी, दूरदर्शी, महत्वाकांक्षी, चपल वक्ता, जुझारू कवि और अदभुद नेत्रत्व एंवम कार्यक्षमता से भरपूर बेहद शालीन राजनेता और एक अटल व्यक्तित्व, हमारे आदरणीय पूर्व प्रधानमंत्री “श्री अटल बिहारी वाजपेयी”. शायद ये कहना वाकई मे कोई अतिशियोक्ति न होगी की ऐसी अदभुद क्षमताओं वाले पुरुष विरले ही इस संसार मे जन्म लेते हैं।

25 दिसंबर 1924 को आगरा के पास एक छोटे से गाँव बटेश्वर मे जन्मे अटल जी की तार्किक क्षमता और वक्त्रत्व कला का आभास शायद उनके करीबियों को पहले ही हो चुका था तभी तो एक बार स्वयं जवाहर लाल नेहरू ने उनके बारे मे एक बार ये कहा की ये नौजवान एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा और आर्य सभा के साप्ताहिक सत्संग मे बोलने से शुरू हुआ उनका ये सफर एक साहित्यकार, पत्रकार और एक सांसद से होता हुआ भारत देश के प्रधानमंत्री बनने तक पहुँच गया। पहले “राष्ट्रधर्म” पत्रिका के संपादक और साहित्यकार और फिर पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुये 10 बार लोकसभा के सदस्य और फिर चार राज्यों (उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और दिल्ली) से लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हुये लखनऊ से 5 बार सांसद भी रहे और सिर्फ इतना ही नहीं वो एक नहीं बल्कि तीन-तीन बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर भी चुने गए।

अपनी उम्र के नौवें दशक मे पहुँच चुके इस महान व्यक्तित्व को भारत रत्न के सम्मान से नवाजा जाना पूरे देश के लिए बेहद गर्व का विषय है। ये अटल जी का महान व्यक्तित्व ही हैं जो भारत रत्न के सम्मान से नवाज़े जाने से न केवल स्वयं उनकी पार्टी भाजापा बल्कि विरोधी पार्टी भी खुशी से भरी नज़र आ रही है, ये अटलजी की राजनैतिक शालीनता का ही असर है की विरोधी खेमा भी उनकी राजनैतिक नेत्रत्व क्षमता और उनके अड़िग एवं अटल फैसलों पर उनके पक्ष मे सम्मान के साथ खड़ा नज़र आता है इसीलिए किसी भी देशवासी को इसमे कतई भी शक नहीं की अटलजी स्वयं भारत के रत्न हैं। प्रत्येक व्यक्ति के दिल मे उनके लिए ढेर सारा प्यार और सम्मान है और हो भी क्यों न अटलजी ने अपने जीवन के हर एक क्षण को अपने देश की सेवा मे लगाया है,

उन्होने शुरुआत मे तानाशाही का जुल्म सहा और आपातकाल मे जेल जाने के बाद सत्ता मे आकर भी अपने कदम जमाये ये उनकी देशसेवा का ही बल था की देश के प्रधानमंत्री रहते हुये उनके कार्यकाल मे अनेकों योजनाओं का कायाकल्प हुआ और इसी के साथ उन्ही के कार्यकाल मे 11 और 13 मई सन 1998 को भारत की महान उपलब्धियों मे एक और इजाफा करते हुये पोकरण मे भूमिगत परमाणु परीक्षण कर भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न देश के रूप मे विश्व पटल पर उभरा, और लाखों युवाओं ने उनसे प्रेरणा ली, ये भारतीय संस्क्रती की महानता और अटलजी के विशाल ह्रदय की उदारता का प्रत्यक्ष परिचय था की सभी झगड़ों और आपसी मतभेदों को भूलाकर 19 फरवरी सन 1999 को ना केवल सदा-ए-सरहद नाम की दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू की, बल्कि पहले यात्री के तौर पे पाकिस्तान जाकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मुलाक़ात कर उनसे दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया हांलाकी की इसके बाद हुये कारगिल के युद्ध से उन्हे तीव्र पीढ़ा का दंश भी झेलना पड़ा लेकिन इससे भी वो रूके नहीं झुके नहीं और निरंतर निस्वार्थ भाव से अपने देश की सेवा मे लगे रहे।

संयम और शालीनता की प्रतिमूर्ति अटलजी और उनकी राष्ट्रसेवा के बारे मे जितना भी लिखा जाये वो कम ही होगा इसलिए आज उनकी इस अमिट छवि और एक चमत्कारी व्यक्तित्व के बारे मे लिखते हुये मैं स्वंम को असमर्थ पाता हूँ हांलाकी ये भी मेरे भाग्य की ही बात है की अटलजी के जन्मदिवस और उनके भारत रत्न से सम्मानित होने के ही क्षण ही एक लेखक के तौर पर ये मेरा पहला लेख भी है और शायद इसी वजह से आज इस महान शख्सियत के बारे मे दो शब्द लिखने का दुस्साहस मैं जुटा पाया हूँ। मैं अपने आपको बेहद सौभाग्यशाली भी मानता हूँ की उनके विषय मे मैं कुछ पंक्तियाँ लिख पाया, उनकी कवितायें हमेशा हमारी पथप्रदर्शक बनकर हमारे दिलों मे हौसले की लॉं जलाए रहेंगी और अन्त मे उनकी ही कविता की पंक्तियों के साथ हम सभी उनके दीर्घआयु होने की कामना करतें हैं।

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh